चना जोर गरम
स्कूल से घर पहुँचते ही राजू ने अपना बस्ता दरवाजे पर रखा और सीढ़ियों पर बैठ गया। दरवाजे पर लटका ताला देख समझ गया कि माँ को आज भी दफ्तर से लौटने में देर हो गयी है।
पड़ोस वाली वर्मा आंटी ने उसे अंदर आने को कहा तो उसने यह कह “बस माँ पहुँचने ही वाली हैं” मना कर दिया। इस तरह रोज़ रोज़ उनके घर जाना राजू को ठीक नहीं लगता था। बैठा हुआ सोचने लगा की उसके और दोस्तों की माँ कितने प्यार से उनके घर पहुँचने का इंतज़ार करती हैं। एक मैं ही अभागा हुँ जिसका स्वागत ये दरवाजे पर लटका ताला करता है।
फिर उसका मन उसे बीते दिनों में ले गया जब उसके पापा उनके साथ थे। कितनी मस्ती करते थे हम तीनो मिल कर। कभी पिकनिक पर जाना तो कभी सर्कस देखने, कभी पापा का उसे साइकिल चलाना सिखाना तो कभी अपने स्कूटर पर बैठा इधर उधर के चक्कर लगाना। क्या दिन थे वो भी, जब मैं स्कूल से आता तो माँ मेरी राह देख रही होती और गरमा गरम नाश्ता कराती। कुछ देर बाद पापा भी आ जाते और फिर शुरू होता भर में ख़ुशी का माहौल। पापा जब आफिस से आते तो अक्सर अपने साथ ‘चना जोर गरम’ लाते। और माँ हमेशा एक ही बात दोहरा देती ” ये सेहत के लिए अच्छी नहीं है।” मगर मसाले और नीम्बू से मिश्रित उस चने को खाते हुए वो खुद भूल जाती कि ये सेहत के लिए अच्छी नहीं है। और चने से भरे मुँह से कहती ” जो भी हो, है तो लाजवाब।” और हम सब जोर से ठहाका लगाते।
इन्ही भूली बिसरी बातों में खोया था राजू कि माँ पहुँच गयी। उसे इस तरह सीढ़ियों पर बैठा देख उनकी आँखें नाम हो गयी। झट से ताला खोला और उसे हाथ मुँह धोने को कह किचन में घुस गयी। जल्दी से खाना गरम कर टेबल पर लगाया और राजू को आवाज दी ” राजू, जल्दी से आयो, गरमा गरम खाना तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है।”
राजू टेबल पर बैठ गया और खाने लगा। उसे गुम सुम से देख माँ ने पुछा ” क्या हुआ राजू, इतना उदास क्यों है। सॉरी बेटा, आज फिर ऑफिस में देरी हो गयी।” ये कह माँ ने अपना हाथ राजू के सर को प्यार से सहलाना शुरू कर दिया। राजू पहले ही पापा को याद कर उदास था लेकिन जब माँ का लाड मिला तो अपने को रोक नहीं पाया और उसकी आँखों से जर जर आँसू टपकने लगे।
उसे रोता देख माँ अपनी कुर्सी छोड़ उसकी तरफ लपकी और उसका सर अपने सीने से लगा चुप कराने लगी। बिन कहे ही माँ समझ गयी थी कि राजू अपने पापा की कमी महसूस कर रहा है। राजू के पापा की मृत्यु एक सड़क हादसे में दो साल पहले ही हुई थी। उसके बाद घर का सारा भार माँ पर आ पड़ा जिसके कारण वह नौकरी कर रही थी। दोनों माँ बेटा एक दुसरे से लिपट बहुत देर तक रोते रहे। आखिर कुछ देर बाद माँ ने अपने और राजू के आँसू पोछे और हल्का सा मुस्करा के बोली ” राजू, जाने वाले का दुःख तो सदा ही होता रहेगा मगर बेटा जो पीछे रह जाते हैं जीना तो उन्हें पड़ता ही है। जब जीना है तो क्यों न थोड़ा मुस्करा कर जीने की आदत डालें। हमें रुपयों पैसों की तंगी होने लगी थी सो मैंने नौकरी कर ली। बड़े हो तुम भी कुछ बन जाओगे तो वो तंगी भी दूर हो जाएगी।”
माँ की बात सुन राजू भी थोड़ा मुस्करा दिया और बोला ” हाँ माँ, हस्ते गाते जीने का पाठ तो हमें पापा ने ही पढ़ाया था और हम उसे ही भूल गए और उदास रहने लगे। हमें इस तरह जिंदगी जीते हुए देख पापा को कितना बुरा लगेगा।” यह कह राजू अपना मुँह पोच खड़ा हुआ और घर से बहार निकल पड़ा। माँ ने पीछे से आवाज दे पुछा ” अरे, कहाँ जा रहे हो। ” तो सिर्फ ” अभी आता हूँ ” राजू चल दिया।
कुछ देर बाद राजू जब घर पहुंचा तो उसके हाथ में एक पैकेट में बंधा कुछ सामान था। माँ ने जब उसे खोला तो देखते ही रह गयी। सामने पड़ी था ढेर सारा ‘चना जोर गरम’ । आज दो साल बाद चना जोर गरम घर आया था। अनकहीं फिर से नम हो गयी। माँ को भावुक होता देख राजू बोला ” माँ, ये सेहत के लिए अच्छा नहीं होता, मगर हमें ये खाता देख पापा कितने खुश होंगे। ” अपने को संभालते हुए माँ बोली ” अरे नहीं, चना जोर गरम तो लाजवाब है। ” और दोनों हँसते हुए मिल कर ‘चना जोर गरम’ पर टूट पड़े।
परिस्थितियाों और कठिनाइयों का सामना हमें हमेशा मुस्कुराते हुए करना चाहिए।
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